रसोइयों को कई महीनों से नहीं मिली पगार, कब होगा खत्म इंतजार
कानपुर देहात
कहने के लिए रसोइयों की ड्यूटी सिर्फ दो घंटे की होती है लेकिन पूरा दिन स्कूल में ही बीत जाता है। परिषदीय विद्यालयों में तैनात रसोइयों को स्कूल का ताला खोलने और बंद करने से लेकर चपरासी, चौकीदार और सफाईकर्मी तक की जिम्मेदारी निभानी पड़ रही है। सिलेंडर है तो ठीक वरना लकड़ी पर भोजन तैयार करना पड़ता है। इसके बाद भी दुत्कार झेलनी पड़ती है। जब तब नौकरी से निकालने की धमकी भी मिलती है। 5 माह से वे मानदेय का इंतजार कर रही हैं अभी तक केवल सितंबर 2024 तक का ही रसोइयों को मानदेय मिला है। प्रति माह मात्र 2000 रुपए मानदेय पर कार्य करने वाली रसोइयों को आखिर समय से मानदेय क्यों नहीं दिया जाता है इसके लिए जिम्मेदार कौन है ?
परिषदीय स्कूलों में बेहद अल्प मानदेय पर काम करने वाले रसोइयों की हालत बेहद दयनीय है। इन रसोइयों को पिछले पांच महीने से मानदेय नहीं दिया गया है। प्रतिदिन काम करने के बावजूद समय पर मानदेय का भुगतान न होने से इनकी गृहस्थी बड़ी मुश्किल से चल रही है लेकिन बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारी इनके मानदेय भुगतान को लेकर उदासीन बने हुए हैं। जनपद के 1925 परिषदीय विद्यालयों में करीब 4276 रसोईयां कार्यरत हैं। यह प्रतिदिन करीब डेढ़ लाख बच्चों के लिए भोजन पकाती हैं। इस काम के बदले इन्हें प्रति माह 2 हजार रुपये का बेहद न्यूनतम मानदेय दिया जाता है। स्कूलों में भोजन व्यवस्था की रीढ़ बने इन रसोइयों को मानदेय कभी समय पर नहीं मिल पाता। शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के नाम पर करोड़ों रुपये का बजट हजम करने वाले बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारी रसोइयां मानदेय के नाम पर अपना हाथ बटोर लेते हैं लिहाजा इन रसोइयों को कभी समय से मानदेय नहीं मिल पाता। जिले में कार्यरत रसोइयों को पिछले पांच महीने से मानदेय नहीं मिला है। अक्टूबर 2024 से फरवरी 2025 तक का मानदेय बाकी है। मानदेय न मिलने से इनकी गृहस्थी बड़ी मुश्किल से चल रही है। परेशानी सिर्फ समय से मानदेय मिलने की ही नहीं है बल्कि स्कूलों में दो घंटे ड्यूटी तय होने के बाद भी घंटो रुकना पड़ता है इसके अलावा छात्र नामांकन बढ़वाने में भी सहयोग करना