देश में डिजिटल जनगणना को लेकर केंद्र सरकार की अधिसूचना जारी, 2027 से शुरू होगा सर्वे
कानपुर देहात
देश में लंबे समय से प्रतीक्षित जनगणना की प्रक्रिया अब औपचारिक रूप से शुरू होने जा रही है। केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय ने जनगणना अधिनियम 1948 के अंतर्गत एक अधिसूचना जारी करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि वर्ष 2027 में यह जनगणना संपन्न कराई जाएगी। खास बात यह है कि इस बार की जनगणना में 1931 के बाद पहली बार जातीय गणना को भी शामिल किया गया है जो सामाजिक न्याय और नीति निर्धारण के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
कब और कहाँ होगी जनगणना की शुरुआत-
अधिसूचना के अनुसार देश के अधिकांश क्षेत्रों में जनगणना की तिथि 1 मार्च 2027 तय की गई है जबकि जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे बर्फीले और कठिन भौगोलिक परिस्थितियों वाले क्षेत्रों में यह प्रक्रिया पहले यानी 1 अक्टूबर 2026 से शुरू होगी। यह विभाजन क्षेत्रीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए किया गया है ताकि जनगणना कार्य बिना किसी मौसमीय रुकावट के सुचारू रूप से पूरा हो सके।
दो चरणों में होगी जनगणना-
यह प्रक्रिया दो प्रमुख चरणों में होगी। पहला चरण हाउस लिस्टिंग और हाउसिंग सेंसर 1 अप्रैल 2026 से 30 सितंबर 2026 तक चलेगा। इसमें मकानों की संरचना, स्वामित्व, सुविधाएं और आवासीय स्थिति की जानकारी इकट्ठी की जाएगी। दूसरा चरण 9 फरवरी 2027 से 1 मार्च 2027 की मध्यरात्रि तक चलेगा जिसमें प्रत्येक व्यक्ति की जनसांख्यिकीय, सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक और जातिगत जानकारी दर्ज की जाएगी। लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे दुर्गम क्षेत्रों में विशेष समयसीमा 1 अक्टूबर 2026 तय की गई है।
डिजिटल प्लेटफॉर्म पर होगी देश की सबसे बड़ी जनगणना-
यह भारत की पहली पूरी तरह डिजिटल जनगणना होगी। इसके लिए विशेष ऐप और टैबलेट का उपयोग किया जाएगा जिससे कागजी कामकाज समाप्त हो जाएगा। नागरिक खुद भी स्व-गणना पोर्टल या ऐप पर जाकर अपनी जानकारी भर सकेंगे जिसके बाद उन्हें एक यूनिक आईडी प्राप्त होगी। डेटा के त्वरित प्रसंस्करण के लिए सीएमएमएस पोर्टल विकसित किया गया है। सरकार ने डेटा गोपनीयता को सर्वोच्च प्राथमिकता बताते हुए कहा है कि कोई भी सूचना तीसरे पक्ष से साझा नहीं की जाएगी।
जातिगत आंकड़ों से बदल सकता है सामाजिक समीकरण-
जनगणना 2027 की सबसे चर्चित पहल जातिगत गणना होगी। स्वतंत्र भारत में पहली बार जातियों से संबंधित आंकड़े एकत्र किए जाएंगे। इसके लिए प्रश्नावली में विशेष कॉलम जोड़े गए हैं। यह कदम सामाजिक-आर्थिक योजनाओं, आरक्षण समीक्षा और पिछड़े समुदायों की पहचान में निर्णायक भूमिका निभाएगा हालांकि ओबीसी जातियों के आंकड़ों को सामूहिक ओबीसी छतरी के तहत दर्ज करने की चर्चा से कुछ आशंकाएं भी सामने आ रही हैं जिन पर सरकार से स्पष्टता की मांग की जा रही है।
नीति, परिसीमन और महिला आरक्षण की दिशा में असर-
जनगणना 2027 के परिणामों के आधार पर 2028 में लोकसभा और विधानसभा सीटों का परिसीमन शुरू हो सकता है। यह नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023 के तहत 33 फीसदी महिला आरक्षण लागू करने के लिए जरूरी आंकड़े मुहैया कराएगा। इससे पहले 2011 की जनगणना के आंकड़े दो साल बाद जारी हुए थे लेकिन इस बार डिजिटल प्रक्रिया के चलते प्रारंभिक आंकड़े मार्च 2027 और विस्तृत रिपोर्ट दिसंबर 2027 तक आ सकती है। उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में 2027 के विधानसभा चुनाव जनगणना से प्रभावित नहीं होंगे इसकी पुष्टि गृह मंत्रालय ने कर दी है।
चुनौतियां और तैयारियां-
जहां एक ओर डिजिटल जनगणना से प्रक्रिया तेज और पारदर्शी होगी वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता और इंटरनेट की सीमित पहुंच बड़ी चुनौती बन सकती है। इसके अलावा जातिगत आंकड़ों की प्रस्तुति और राजनीतिक उपयोग पर भी बहस छिड़ सकती है। दक्षिणी राज्यों ने यह आशंका जताई है कि जनसंख्या आधारित परिसीमन से उन्हें नुकसान हो सकता है जिस पर केंद्र सरकार ने संतुलन और न्याय का आश्वासन दिया है।
विकसित भारत 2047 की नींव बनेगी जनगणना-
जनगणना 2027 सिर्फ एक जनसंख्या गणना नहीं बल्कि यह डिजिटल युग में भारत के प्रशासनिक और सामाजिक ढांचे को नए सिरे से आकार देने की ऐतिहासिक प्रक्रिया है। डिजिटल तकनीक, स्व-गणना और जातिगत आंकड़ों के समावेश के साथ यह एक बड़ी नीतिगत क्रांति की शुरुआत हो सकती है। यह प्रक्रिया विकसित भारत 2047 के लक्ष्य को वास्तविकता में बदलने की दिशा में एक ठोस और दूरदर्शी कदम साबित होगी।
जातीय गणना का महत्व-
1931 के बाद यह पहली बार है जब सरकार ने जातीय गणना को जनगणना प्रक्रिया में शामिल करने का निर्णय लिया है। यह कदम सामाजिक संरचना को बेहतर ढंग से समझने और विभिन्न जातीय समूहों की वास्तविक संख्या और उनकी स्थिति का आंकलन करने में सहायक होगा। सामाजिक न्याय, आरक्षण नीति, शिक्षा और रोजगार के अवसरों में सुधार के लिए यह डेटा नीति निर्माताओं को मजबूत आधार देगा।
कौन करेगा जनगणना का काम-
जनगणना के कार्य के लिए लगभग 30 लाख गणनाकर्ताओं की आवश्यकता होगी जिनमें अधिकांश स्कूली शिक्षक होंगे। इसके अतिरिक्त लगभग 1.20 लाख अधिकारी जिला और उप-जिला स्तर पर प्रबंधन और निगरानी के कार्यों में लगाए जाएंगे। साथ ही 46,000 प्रशिक्षकों की भी आवश्यकता होगी जो इन गणनाकर्ताओं को प्रशिक्षित करेंगे। गणनाकर्ता देश के हर कोने में जाकर आंकड़े एकत्र करेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि किसी भी नागरिक की जानकारी छूट न जाए। इस प्रक्रिया के बाद आंकड़ों को केंद्रीकृत रूप से प्रसंस्करित किया जाएगा और विभिन्न चरणों में उनके परिणाम सार्वजनिक किए जाएंगे।
गुणवत्ता नियंत्रण और डेटा जारी करने की प्रक्रिया-
जनगणना डेटा की सटीकता सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत गुणवत्ता नियंत्रण प्रणाली अपनाई जाती है। इसमें पुनः जांच और ऑडिट की व्यवस्था होती है। पहले चरण में अनंतिम आंकड़े जारी किए जाते हैं, इसके बाद विस्तृत तालिकाएं और सूचनाएं विभिन्न सामाजिक और आर्थिक संकेतकों के आधार पर प्रकाशित की जाती हैं।