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कानपुर देहात सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लोग जो दिखते हैं वह होते नहीं जो होते हैं वह दिखते नहीं

डिजिटल छवि बनाने में जुटा इंसान, हर कोई दिखावे में परेशान

कानपुर देहात

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लोग जो दिखते हैं वह होते नहीं जो होते हैं वह दिखते नहीं

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जिस सोशल मीडिया को अभिव्यक्ति, जानकारी साझा करने और नवाचार का अहम मंच समझा जाता है वह आज लोगों की परेशानी की वजह बन रहा है। सोशल मीडिया के जरिए अफवाह फैलाकर सामाजिक सद्भाव को बिगाडऩे और सकारात्मक सोच को संकीर्ण करने का कार्य किया जा रहा है। सामाजिक और धार्मिक स्वार्थ के साथ राजनीतिक स्वार्थ के लिए भी गलत जानकारियां परोसी जा रही हैं। सोशल मीडिया के जरिए तथ्यों को भी तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है। सोशल मीडिया के प्रभाव के कारण लोगों के सोचने का दायरा भी संकुचित होता जा रहा हैै।साइबर अपराध सोशल मीडिया से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या है। सोशल मीडिया का अत्यधिक प्रयोग हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। सोशल मीडिया सामाजिक समरसता को बिगाडऩे लगा है। सकारात्मक सोच की जगह समाज को बांटने वाली सोच को बढ़ावा देने लगा है। सोशल मीडिया के दुरुपयोग पर सख्ती की आवश्यकता लगातार महसूस की जा रही है। समाजशास्त्री राजेश कटियार का कहना है कि सोशल मीडिया पर 90 फीसदी से ज्यादा दिखावा हो रहा है, पता नही क्यो लोग सच्चाई से दूर भाग रहे हैं। सोशल मीडिया का इस्तेमाल लोगो मे नकारात्मक बाते फैलाने के लिए किया जा रहा है जबकि सोशल मीडिया एक बहुत अच्छा प्लेटफार्म है जहाँ हम दुनिया के किसी भी जगह बैठे हुए आदमी से बात करते है और सम्पर्क में रह सकते है लेकिन अब इसका बिल्कुल उल्टा हो रहा है इसको नकारत्मक सोच फैलाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, लोगो को बेवकूफ बनाने के लिये इस्तेमाल किया जा रहा है और दिखावे के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है हालांकि कुछ लोग सच्चे भी होते हैं लेकिन ज्यादातर लोग दिखावा करते हैं और बहुत बड़ी बडी फेकते हैं। अपनी बातो को बहुत बड़ा चढ़ा कर बताते हैं जोकि असल मे होती ही नहीं। इन्हीं दिखावे वाली बातो से ये लोग नए रिश्ते बनाने की कोशिश भी करते हैं और उसका गलत फायदा उठाना भी चाहते हैं वैसे तो अब बहुत लोग यह बात जान गए हैं फिर भी सावधान रहने की आवश्यकता है। शिक्षाशास्त्री प्रवीण त्रिवेदी का इस संदर्भ में कहना है कि काश लोग सच में वैसे होते जैसे वे अपने स्टेटस में दिखते हैं। विचारों से गहन, भावनाओं से भरे, समाज के लिए जागरूक और आत्मा से संत लेकिन अफसोस! आजकल स्टेटस इंसान का नहीं उसकी डिजिटल छवि का आईना है। असल जिंदगी में वही लोग दूसरों की पीठ पीछे वार करते हैं। रिश्तों को जरूरत की सीढ़ी मानते हैं और जमीर को लाइक और फॉलोअर्स में गिरवी रख चुके होते हैं। स्टेटस में दिखने वाले संत असल में अंदर से स्वार्थ का स्तूप बन चुके हैं। ऐसे में सवाल ये नहीं कि लोग क्या लिखते हैं सवाल ये है कि क्या वो उस लिखे हुए के लायक भी हैं? इस पर मंथन करने की आवश्यकता है।

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