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मकर संक्रांति 15 जनवरी को है, और अब 15 जनवरी को ही हुआ करेगी।

मकर संक्रांति 15 जनवरी को है, और अब 15 जनवरी को ही हुआ करेगी।
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संक्रांति काल का अर्थ है सूर्य देव का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश काल।

हम में से ज्यादातर लोग हमेशा से 14 जनवरी को मकर संक्रांति मनाते आ रहे हैं इसलिए उनको कुछ समय से मकर संक्रांति का 15 जनवरी को होना कुछ विचित्र लग रहा है।
लेकिन अब से सन् 2079 (विक्रम संवत् 2136) तक, मकर संक्रांति 15 जनवरी को ही होगी।

जैसा कि हम सब जानते हैं कि सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश (संक्रमण) का दिन “मकर संक्रांति” के रूप में जाना जाता है। ज्योतिषविदों के अनुसार प्रतिवर्ष इस संक्रमण में 20 मिनट का विलंब होता जाता है। इस प्रकार तीन वर्षों में यह अंतर एक घंटे का हो जाता है तथा 72 वर्षो में यह फर्क पूरे 24 घंटे का हो जाता है।

अंग्रेजी कैलंडर की गणना पद्धति इतनी सटीक नहीं होती कि इस 20 मिनट के अंतर की गणना को समाहित कर सके, इसीलिए ये भ्रांति उत्पन्न होती है।

भारतीय गणना में, सायं 4 बजे के बाद संध्याकाल माना जाता है और भारतीय ज्योतिष विज्ञान के अनुसार संध्या काल के बाद सूर्य से सम्बंधित कोई भी गणना उस दिन न करके अगले दिन से की जाती है।
इस हिसाब से वास्तव में मकर संक्रांति सन् 2008 (विक्रम संवत् 2065) से ही 15 जनवरी को हो गई थी। लेकिन सूर्यास्त के पहले का समय होने के कारण 14 जनवरी को ही मकर संक्रांत मानते आ रहे थे।

वैसे तो सन् 2008 से सन् 2079 तक (यानि विक्रम संवत् 2065 से विक्रम संवत् 2136 तक) मकर संक्रांति 15 जनवरी की ही हो चुकी है।

सन् 2080 (विक्रम संवत् 2137) से मकर संक्रांति 16 जनवरी को होगी। वैसे उसके बाद भी कुछ लोग कुछ बर्ष तक 15 जनवरी को मनाते रहेंगे।

संक्रांति का चन्द्र महीनों की तिथि से कोई मेल या तुलना नहीं है।
संक्रांति की अपनी गणना है जो कि अंग्रेजी से संयोग कर जाती है।

72 साल के हर एक चक्र में संक्रांति चक्र एक दिन बढ़ जाता है।
सन् 275 में मकर संक्रांति 21 दिसम्बर को हुआ करती थी, जो कि अब सन् 2008 आते-आते 15 जनवरी तक आ गयी है।

सन् 1935 से सन् 2008 तक मकर संक्रांति 14 जनवरी को रही और सन् 1935 से पहले 72 साल तक यह 13 जनवरी को रही थी। .

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