उरई जालौन
उरई नगर पालिका में कर अधीक्षक का तबादला बना चर्चा का विषय: स्थानांतरण के बाद भी रुकने की हो रही जद्दोजहद, सुर्खियों में बना अधिकारी
संवाददाता, उरई
उरई नगर पालिका परिषद में इन दिनों कर अधीक्षक का स्थानांतरण एक बड़ा मुद्दा बन गया है। शासन स्तर से तबादला आदेश जारी हो चुका है, लेकिन इसके बावजूद संबंधित अधिकारी अपनी पोस्टिंग रोकने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहे हैं। पिछले दो-तीन दिनों से लगातार उनका दौरा नगर में चर्चा का विषय बना हुआ है। वह कभी सभासदों से मिल रहे हैं तो कभी अधिकारियों के दरवाजे खटखटा रहे हैं।
सूत्रों के अनुसार, स्थानांतरण आदेश जारी होने के बाद कर अधीक्षक ने नगर में अपने रसूख और पहुंच का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। वे न केवल अपना ट्रांसफर रुकवाने के प्रयास में लगे हुए हैं, बल्कि अन्य कर्मचारियों और अधिकारियों के तबादलों में भी दखल देने लगे हैं। नगर पालिका के भीतर यह चर्चा तेज है कि वह मानो “ट्रांसफर एजेंट” की भूमिका में आ गए हैं।
कारण क्या है उरई से मोह का?
प्रशासनिक हलकों में यह सवाल आम हो गया है कि आखिर उरई से इतना लगाव क्यों है कि तबादले के बाद भी यहां से हटना नहीं चाह रहे हैं? बताया जा रहा है कि कर अधीक्षक की उगाही प्रणाली काफी व्यवस्थित है, जिससे न केवल निजी लाभ हो रहा है, बल्कि कुछ अधिकारियों की जेब भी भर रही है। नगर में कई लोग उन्हें “कमाऊ पुत्र” कहकर संबोधित करते हैं — यानी ऐसा कर्मचारी जो खुद भी कमाता है और दूसरों को भी कमवाता है। यही वजह है कि कुछ प्रभावशाली लोग उन्हें यहां से हटने नहीं देना चाहते।
लगातार हो रही हैं शिकायतें
कर अधीक्षक के कार्यशैली को लेकर लंबे समय से शिकायतें सामने आती रही हैं। एक माह पहले भी एक प्रमुख जनप्रतिनिधि ने उनके खिलाफ शासन स्तर पर शिकायत की थी। आरोप है कि कर संग्रहण के नाम पर आम लोगों को अनावश्यक रूप से परेशान किया जाता है। दुकान मालिकों और छोटे व्यापारियों से मनमानी वसूली की खबरें भी सामने आई हैं। कई मामलों में उनके खिलाफ आरटीआई और शिकायत पत्र भी भेजे गए हैं, लेकिन मजबूत पकड़ के कारण हर बार कार्रवाई टलती रही।
सभासदों की चुप्पी भी सवालों के घेरे में
दिलचस्प बात यह है कि नगर पालिका के कई सभासदों ने भी इस मामले में चुप्पी साध रखी है। अंदरखाने की खबरों के मुताबिक, कुछ सभासद कर अधीक्षक के संपर्क में हैं और अपने-अपने हितों के चलते उनका साथ दे रहे हैं।
प्रशासन क्या करेगा?
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या शासन अपने तबादला आदेश को प्रभावी रूप से लागू कर पाएगा या फिर रसूख के आगे नियम-कानून फिर एक बार हार जाएंगे? आम जनता में यह असंतोष बढ़ रहा है कि यदि अधिकारियों के स्थानांतरण जैसे सामान्य प्रशासनिक निर्णय भी प्रभावित हो रहे हैं, तो भ्रष्टाचार और मनमानी पर कैसे लगाम लगेगी?