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बच्चे मोबाइल से चुप हो रहे है, कही इसकी लत से स्तब्ध न रह जाये जमाना

बच्चे मोबाइल से चुप हो रहे है, कही इसकी लत से स्तब्ध न रह जाये जमाना
एक माह पहले ऑस्ट्रेलिया ने स्कूली बच्चों को मोबाइल पर बैन लगा दिया। मोबाइल लत है या शौक, मजबूरी है या फिर एक तकनीकी साधन यह तो उपयोगकर्ता के नजरिये और विवेक पर निर्भर करता है।
मशीनों ने आदमी के काम को सरल और समय को कम करने के लिए बनाया गया था मगर हम मशीनों और तकनीकी से ही नियंत्रित होने लगे तो उसके जोखिम को समझना आवश्यक हो जाता है। आज मोबाइल की लत एक वैश्विक समस्या बन गयी है। शायद यह कुछ दिनों में उतनी खतरनाक होने की दिशा में बढ़ रही है जिस दिशा में पर्यावरण और जलवायु की समस्या।
पिछले दिनों ट्रेन से लखनऊ जाना हुआ। मैं नीचे सीट पर बैठने की बजाय ऊपर के बर्थ पर अधिक कम्फर्ट महसूस करता हूँ, लिहाजा वँहा बैठ गया। ट्रेन अमेठी स्टेशन पर रुकी तो एक बुजुर्ग ट्रेन पर चढ़े। वह भी ऊपर बर्थ पर हमारे बगल बैठ गए। नीचे की सीट पर एक महिला मुश्किल से 2 साल के बच्चे को चुप कराने के लिए जुटी थी मगर असफल थी। बुजुर्ग ने मुस्कुराकर कहा कि वह बच्चा मोबाइल मांग रहा है। मोबाइल हांथ में आते ही उसके रोने की आवाज बंद थी। उसकी आंखें मोबाइल की स्क्रीन देखने के लिए आतुर थी जो अब पूरी हो गई थी। मैंने पूछा बाबा आपने कैसे अंदाजा लगा लिया कि बच्चा मोबाइल चाहता है। मुस्कुराते हुए अपनी पारखी नजरो से उन्होंने हमें देखा और कहा रोने का कारण कुछ भी हो मगर मोबाइल से चुप हो सकता है यह मेरा तजुर्बा है।
मोबाइल फुटवियर की तरह अपनी भूमिका बना ली हैं। फोन मिलाना बाते करना गुजरे जमाने की बात हो चुकी है। समय देखना हो या कैलक्यूलेटर चलना हो। मौसम का हाल हो या मेल करना और अब तो एआई तकनीकी ने ढेर सारे बदलाव ला दिए है। सब ठीक है बस मोबाइल हमारे मन पर नियंत्रण न करने पाए नही तो आज मोबाइल से बच्चे चुप हो रहे है कल जमाना स्तब्ध न रह जाये।

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