कानपुर देहात
विजय शंकर कौशल
कुटिया आश्रम
गुरु शिष्य परम्परा देश की संस्कृति का अहम हिस्सा, जीवन पर्यंत करें गुरु का सम्मान
गुरु अपनी गरिमा को रखें बरकरार
कानपुर देहात।
हर किसी के जीवन में गुरु का विशेष महत्व होता है। मनुष्य को गुरु का महत्व समझना चाहिए और जीवन पर्यन्त उनका सम्मान करना चाहिए। यह तथ्य अब मिथ्या नजर आ रहा है। आज हर रिश्ते को बाजारवाद की नजर लग गई है, तब गुरु-शिष्य के रिश्तों पर इसका असर न हो ऐसा सोचना ही बेमानी होगी। नए जमाने के नए मूल्यों ने हर रिश्ते पर बनावट, नकलीपन और स्वार्थों की एक ऐसी अदृश्य चादर ओढ़ ली है जिसमें असली सूरत नजर ही नहीं आती। शिक्षा के हर स्तर के बाजार भारत में चहुमुखी दिख रहे हैं। दरअसल आज हम जिस आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था में सांस ले रहे हैं वहां विकास के नाम पर बदलते सभी क्षेत्रों ने प्रगति की है। उसी तरह शिक्षा के क्षेत्र में अत्याधुनिक तकनीकी विस्फोटक विस्तार और प्रगति के कारणवश गुरुकुल प्रणाली की पैरवी करना तर्कसंगत नहीं लगता है। आज नई पीढ़ी में जो भ्रमित जानकारी या कच्चापन दिखता है उसका कारण शिक्षक ही हैं क्योंकि सच यह भी है कि अपने सीमित ज्ञान, कमजोर समझ और पक्षपातपूर्ण विचारों के कारण वे बच्चों में सही समझ विकसित नहीं कर पा रहे हैं। सबसे बड़ा संकट आज यह है कि गुरु-शिष्य के संबंध आज बाजार के मानकों पर तौले जा रहे हैं। युवाओं का भविष्य जिन हाथों में है उनका बाजारतंत्र किस तरह शोषण कर रहा है इसे समझना जरूरी है। इसके चलते योग्य लोग शिक्षा क्षेत्र से पलायन कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि जीवन को ठीक से जीने के लिए यह व्यवसाय उचित नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि भौतिकता को जीवन का आधार न बनने दें। चरित्रवान और निष्ठावान बने रहने की पुरजोर कोशिश करें। गुरु-शिष्य रिश्तों में मर्यादाएं और वर्जनाएं टूट रही हैं, केवल ये ही नहीं अनुशासन भी भंग होता दिख रहा है। नए जमाने के शिक्षक भी विद्यार्थियों में अपनी लोकप्रियता के लिए कुछ ऐसे काम कर बैठते हैं जो उन्हें लांछित ही करते हैं। सीखने की प्रक्रिया का मर्यादित होना भी जरूरी है।आध्यात्मिक ज्ञान और योग साधना को अपनी जीवनशैली में अपनाने में कंजूसी न करें। गुरुओं के प्रति सच्ची भक्ति का सार यही है। हमारे युवा भारत में इस समय दरअसल शिक्षकों का विवेक, रचनाशीलता और कल्पनाशीलता भी कसौटी पर है क्योंकि देश को बनाने की इस परीक्षा में हमारे छात्र अगर फेल हो रहे हैं तो इसका मतलब ये ही है कि शिक्षक भी फेल हो रहे हैं। नई पीढ़ी बहुत जल्दी और ज्यादा पाने की होड़ में है इसीलिए उसके सामने एक अध्यापक की भूमिका बहुत सीमित हो गई है। नए जमाने ने श्रद्धाभाव भी कम दिख रहा है। परीक्षा को पास करना और एक नौकरी पाना इस दौर की सबसे बड़ी प्राथमिकता बन गयी है। सनातन परम्परा में गुरु को ईश्वर से भी ऊंचा स्थान दिया गया है। सभी धर्मों ने गुरु शिष्य की परम्पराओं और व्यवस्थाओं के महत्व को स्वीकार करके रेखांकित किया है फिर भी वर्तमान में उसके महत्व को दरकिनार कर दिया गया है जबकि गुरु हमें ज्ञान, गौरव और गंतव्य का भान कराने के साथ हमारी जीवन यात्रा का मार्गदर्शन करते हैं। अत: प्रत्येक व्यक्ति को जीवन पर्यंत गुरु का सम्मान करना चाहिए।