सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द के आभाव मे दर-दर भटक रही गर्भवती महिलायें
प्रसव पीडा के दौरान जूझ रही जिन्दगी व मौत से
फफूंद,औरैया। इस पिछड़े क्षेत्र के विकास के लिए किसी जन प्रतिनिधि ने ठोस कदम नही उठाया जवकि जनता अपनी समस्या को लेकर वरावर मांग करती रही।और जनप्रतिनिधि से लेकर अधिकारी तक झूठा आश्वसन देकर छलते रहे। कस्बे की जनता को स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर कई सालों से झूठे आशवासन दिये जा रहे है। पूर्व नगर पंचायत अघ्यक्ष ने नगर सहित ग्रामीण क्षेत्र की जनता की विकराल समस्या को लेकर एक सामुदायिक रवास्थ्य केन्द के लिए काफी प्रयास किया और उन्होने सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द की कागजी कार्यवाही तैयार करके स्वास्थ्य विभाग को सौप दी।उन्होने ने जनता से भी कहाकि अव प्रसव पीड़ा के दौरान महिलाओ को बाहर नही जाना पडेगा शीध ही नगर में एक नया स्वास्थ्य केन्द खुलेगा मगर स्वास्थ्य विभाग ने अघ्यक्ष का कार्यकाल समाप्त होते ही सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द की फाइल बन्द कर स्वास्थ्य विभाग द्वारा जनता को ठेगा दिखा दिया गया।
नगर सहित ग्रामीण क्षेत्र की महिलायों को प्रसव पीड़ा के दौरान परिजन आनऩ फानन मे प्राइवेट वाहन से औरैया,दिवियांपुर,अजीतमल लेकर भागते है। इस दौरान परिजनों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। कभी कभी ऐसा समय भी आ जाता है कि परिजनों को वाहन नही मिलता है और महिला प्रसव पीड़ा के दौरान कराहती रहती है और परिवारीजन संसाधन के अभाव में लाचार नजर आते हैं। सपा, बसपा व भाजपा की सरकारों ने कस्वे की जनता की मूलभूत समास्या पर कोई ध्यान नही दिया, जबकि शासन, प्रशासन द्वारा नगर की जनता को झूठा अश्वासन देकर छला जा रहा है। जबकि नगर पंचायत अध्यक्षों द्वारा बराबर प्रयास किया गया। मगर ज़न प्रतिनिधियों से लेकर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के कान पर जू तक नही रेगी। आज भी महिलायें प्रसव पीड़ा के दौरान जिन्दगी और मौत के बीच जूझ रही हैं। इस क्षेत्र की महिलाओ के रात्रि के समय जब प्रसव पीड़ा होती है, उस समय परिवारीजन परेशान हो उठते हैं। क्योंकि महिला को बाहर ले जाना पडेगा। नगर के पक्के तालाब के पास गेल पाता द्वारा महिला अस्पताल का निर्माण कराया गया था। महिला अस्पताल के नाम से बनी इमारत में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द संचालित है।महिला अस्पताल के नाम से जनता को छ्ला गया है, कोई लेडीज डाक्टर की तैनाती है।
बताते चले कि नगर की जनता ने अपने हक के लिए काफी प्रयास किया मगर शासन,प्रशासन की उपेक्षा के चले असफल रहे। किसी जमाने में फफूद कस्वा तहसील के नाम से जाना जाता था और दिन भर चहल पहल बनी रहती थी इस क्षेत्र के सेनानीयो ने अग्रेंजों को आजादी को लेकर धूल चटा दी थी इस वात से खिन्न होकर अग्रेजो ने तहसील का दर्जा समाप्त कर दिया। देश को आजादी तो मिल गई लेकिन फफूद को तहसील का दर्जा नही मिला।कस्बे की जनता ने तहसील को लेकर घरना प्रदर्शऩ, अमरण अनशन तक कर डाले मगर फफूद को तहसील का दर्जा नही मिला। सपा शासन काल में अजीतमल को तहसील का दर्जा दे दिया गया और कस्बा की जनता को ठेगा दिखा दिया गया। आजादी से लेकर अव तक कस्बे को ऐसी कोई सौगात नही मिली जिससे कस्बे का विकास होता। इस पिछले क्षेत्र के नौजवान बेरोजगारी के अभाव में सुबह से शांम तक सड़को पर चप्पले चटकाते फिर रहे है।
नगर के पक्के तालाव के पास प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द संचालित है और कभी कभी निशुल्क एंबुलेंस सेवा 102 के इंतजार में गर्भवती महिलाऐ घंटो बैठी रहती है प्रसव महिलाओ की पीड़ा से परिजन परेशान होते रहे हैं। सरकारी सुविधाओं का हाल ही बुरा हैं।जबकि गर्भवती महिलाओं को अस्पताल पहुंचाने व वापस घर छोड़ने के लिए शासन स्तर से निशुल्क एंबुलेंस सेवा 102 का संचालन किया जा रहा है।इसके बावजूद गर्भवती महिलाऐं अस्पताल पहुंचने के लिए निःशुल्क एंबुलेंस सेवा 102 का इंतजार करती रही है। कई बार कॉल करने के बावजूद एंबुलेंस मदद के लिए नहीं पहुंची। इससे गर्भवती महिलाऐं व उसके परिजन परेशान होते रहे हैं।