अकबरपुर लोकसभा में पहली बार ईवीएम पर नजर नहीं आएगा ‘हाथ’ का पंजा
बिल्हौर लोकसभा तक कांग्रेस का रहा दबदबा, एक बार अकबरपुर से मिली सफलता
कानपुर देहात। देश और प्रदेश की राजनीति में काफी समय तक काबिज रहने वाली कांग्रेस के लिए यह पहला मौका है जब अकबरपुर लोकसभा सीट से उनका प्रत्याशी मैदान में नहीं होगा। प्रदेश में कांग्रेस द्वारा समाजवादी पार्टी से किए गए गठबंधन के चलते यह सीट कांग्रेस के खाते में नहीं है। अब यहां से सपा के राजाराम पाल गठबंधन के प्रत्याशी के रूप में मैदान में हैं।
अकबरपुर लोकसभा वर्ष 2009 से पहले बिल्हौर लोकसभा के नाम से जानी जाती थी। देश की आजादी के बाद 1952 में पहले लोकसभा चुनाव में बिल्हौर से कांग्रेस की पंडित विजय लक्ष्मी सांसद बनी थी। इसके बाद 1957 से लेकर 1971 तक लगातार कांग्रेस दबदबा बनाए रही। हर बार मैदान में उतरे प्रत्याशियों ने कांग्रेस के चुनाव निशान हाथ के पंजे पर जीत हासिल की। 1977 में बिल्हौर से कांग्रेस को मात खानी पड़ी। यहां से जनता पार्टी के रामगोपाल यादव सांसद चुने गए। इसके बाद कांग्रेस ने 1980 में इस सीट पर फिर वापसी की और रामनारायण त्रिपाठी सांसद बने। 1980 के बाद 1984 का चुनाव भी कांग्रेस ने जीता तब यहां से जगदीश अवस्थी सांसद चुने गए। 1989 में कांग्रेस का दामन छोड़ कर जनता दल से चुनाव लड़े अरुण नेहरू सांसद बने।
यहीं से कांग्रेस की जमीन खिसकने लगी। इसके बाद 1989 से लेकर 2007 तक लगातार कांग्रेस चुनाव लड़ती रही। पार्टी के वोटों के प्रतिशत में लगातार गिरावट आने के बाद भी पार्टी इस सीट पर अपने प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारती रही। मगर कामयाबी वर्ष 2009 में बदले परिसीमन में लोकसभा अकबरपुर बनने पर मिली। वर्ष 2009 में कांग्रेस के राजाराम पाल ने जनता का विश्वास जीता और सांसद बने। इसके बाद 2014 व 2019 में कांग्रेस ने राजाराम पाल पर ही दांव लगाया। हालांकि कांग्रेस इस सीट पर कोई खास असर नहीं छोड़ सकी।अब इस बार पार्टी ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन किया है। यह सीट सपा के खाते में गई है। मगर चेहरा नहीं बदला है। पूर्व में कांग्रेस से चुनाव लड़ने वाले राजाराम पाल को ही सपा ने प्रत्याशी बनाया है। वह कांग्रेस छोड़ कर काफी समय पहले ही सपा का दामन थाम चुके थे। यह पहला मौका है जब लोकसभा चुनाव में ईवीएम मशीन पर हाथ का पंजा नजर नहीं आएगा।